मेरी तश्वीर आँखों में सजा लो दीवारों पर आजकल परदे लटकते हैं l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
ब्लॉग में आपको अनेक विषय वस्तुओं पर जानकारियाँ मिलेंगी जैंसे Education, Technology, Business, Blogging आदि।
Wednesday, September 24, 2014
Monday, September 22, 2014
आओ रेत पे चलें
आओ रेत पे चलें
छाँव दे कुछ छाँ की अपनी
और धूप को हम
धूप से ही सुलगाते चले
आओ रेत पे चलें ।
छाँव दे कुछ छाँ की अपनी
और धूप को हम
धूप से ही सुलगाते चले
आओ रेत पे चलें ।
दल दल मे धसने का
एक एहसास है ये
तुफान से लड़ने का
पल भी खास है ये
आओ रेत पे चलें
एक एहसास है ये
तुफान से लड़ने का
पल भी खास है ये
आओ रेत पे चलें
भूल भी नही सकते
शूल भी नही थकते
पाँव की चुभन भी यूँ
रेत पर उभरती है
आओ रेत पर चलें
आओ रेत पर चलें । गीत - सर्वाधिकार सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
शूल भी नही थकते
पाँव की चुभन भी यूँ
रेत पर उभरती है
आओ रेत पर चलें
आओ रेत पर चलें । गीत - सर्वाधिकार सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Tuesday, September 16, 2014
Saturday, August 23, 2014
Wednesday, August 13, 2014
माँ के चार रूपों की आज स्थिति स्त्री, गौ, धरती और भाषा
माँ के हर रूप को देखो
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ?
कट रही गौ एक तरफ
लुट रही लौ एक तरफ
क्षीण हो रही दिव्या धरा की शाखाएँ
मिट रही पल-पल अपनी ही भाषाएँ
और हम मौन खड़े गूंगे बैठे हैं l
माँ के हर रूप को देखो
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ? रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ?
कट रही गौ एक तरफ
लुट रही लौ एक तरफ
क्षीण हो रही दिव्या धरा की शाखाएँ
मिट रही पल-पल अपनी ही भाषाएँ
और हम मौन खड़े गूंगे बैठे हैं l
माँ के हर रूप को देखो
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ? रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Tuesday, August 12, 2014
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l
समेट रहे हैं पश्चिम को हर ओर
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l
लेटी हुई है शय्या पर भाषा और
हम हिंदी के गुण गा रहे हैं l
लेकर अग्नि हम हाथों में
हिंदी को रोज जला रहे हैं l
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l
है नहीं कोई रक्षक दल अपना
जो गौरव से अपनी भाषा बोले
देखो दाग रहे हैं सीमा से
अपनी भाषा पर ही वो गोले l
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l
समेत रहे हैं पश्चिम को हर ओर
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी;'
देश भक्त बनते जा रहे हैं l
समेट रहे हैं पश्चिम को हर ओर
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l
लेटी हुई है शय्या पर भाषा और
हम हिंदी के गुण गा रहे हैं l
लेकर अग्नि हम हाथों में
हिंदी को रोज जला रहे हैं l
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l
है नहीं कोई रक्षक दल अपना
जो गौरव से अपनी भाषा बोले
देखो दाग रहे हैं सीमा से
अपनी भाषा पर ही वो गोले l
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l
समेत रहे हैं पश्चिम को हर ओर
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी;'
Saturday, July 26, 2014
Thursday, July 24, 2014
उँगलियाँ
हर जगह हर मंच पर
मंडराती नजर आती हैं
ये तेरी उँगलियाँ l
किसी खोजी पत्रकार की तरह
हर बार बेद जाती हैं
ये तेरी उँगलियाँ l
मिटटी पानी धरा मानव की क्या बात करूँ मैं
उस मनोहारी चाँद तक जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l
क्या छूटा इन से आजतक
पाक गीता कुरान तक भी जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l
कब कहाँ किसने की रोकने की
कोशिश और कौन रोक पाया
ये तेरी उँगलियाँ ! -रचना -सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
मंडराती नजर आती हैं
ये तेरी उँगलियाँ l
किसी खोजी पत्रकार की तरह
हर बार बेद जाती हैं
ये तेरी उँगलियाँ l
मिटटी पानी धरा मानव की क्या बात करूँ मैं
उस मनोहारी चाँद तक जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l
क्या छूटा इन से आजतक
पाक गीता कुरान तक भी जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l
कब कहाँ किसने की रोकने की
कोशिश और कौन रोक पाया
ये तेरी उँगलियाँ ! -रचना -सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Thursday, July 3, 2014
Thursday, May 1, 2014
Wednesday, April 30, 2014
Tuesday, April 29, 2014
Friday, April 18, 2014
Wednesday, April 16, 2014
गीत
धुँआ जलते जिगर का देखते है कहाँ कब किसी ने,
अँगार सा जलता है ये और लोग देखते हैं पसीने,
जख्म इतने है बने विन खंजर के इस तन पे,
एक एक को कुरेदा है हर एक सदी ने ! गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
अँगार सा जलता है ये और लोग देखते हैं पसीने,
जख्म इतने है बने विन खंजर के इस तन पे,
एक एक को कुरेदा है हर एक सदी ने ! गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
लुटे हैं कई बार
डूब गया है मेरा भारत देखो चंद चेहरों में,
बिखर गया यहाँ का इंसान चुनावी घेरों में,
लुटे हैं कई बार बच बच के अपनों से,
फंसे हैं हर बार सागर सी लहरों में l रचना @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
बिखर गया यहाँ का इंसान चुनावी घेरों में,
लुटे हैं कई बार बच बच के अपनों से,
फंसे हैं हर बार सागर सी लहरों में l रचना @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Sunday, December 29, 2013
Thursday, December 19, 2013
Thursday, October 24, 2013
पूछा रे पूछा पूछा (Puchha re Puchha Puchha)
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
कख भीटि आई बथौं बणिक
यू रीति रिवाज कैकू च
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
नौउ विकाश कु ली तै चल्णु
कैकी खूटियों न हिटणु च
हरी भरीं कांठियों मा मेरी
विष बनिक रिटणु च
पूछा रे पूछा पूछा
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
भेल्य बिटौमा मोटर आगि
मन्खी यख भीटी भाग्णु च
गौ गुठ्यारू सब मुर्झागी शहर
हफार हैसणु च
पूछा रे पूछा पूछा
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
आई कख भीटि बथौं बणिक
यू रीति रिवाज कैकू च
गौं गैल्यी पुस्तैनी
मिटी गैनी आज
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी
पूछा रे पूछा पूछा
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
आई कख भीटि बथौं बणिक
यू रीति रिवाज कैकू च
गैल्यी पुस्तैनी मिटी गैनी आज
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी – गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी'
Wednesday, September 25, 2013
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मशरूम च्युं
मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।
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