Wednesday, September 24, 2014

मेरी तश्वीर आँखों में सजा लो दीवारों पर आजकल परदे लटकते हैं l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Monday, September 22, 2014

आओ रेत पे चलें

आओ रेत पे चलें
छाँव दे कुछ छाँ की अपनी
और धूप को हम
धूप से ही सुलगाते चले
आओ रेत पे चलें ।
दल दल मे धसने का
एक एहसास है ये
तुफान से लड़ने का
पल भी खास है ये
आओ रेत पे चलें

भूल भी नही सकते
शूल भी नही थकते
पाँव की चुभन भी यूँ
रेत पर उभरती है
आओ रेत पर चलें
आओ रेत पर चलें । गीत - सर्वाधिकार सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, September 16, 2014

विज्ञापन को बस्तु की गुणवता और उपयोगिता का आधार न मना जाय क्योंकि जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण मिटटी होती है और लोग मिटटी को ही कुचल के चल देते हैं l - @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, September 2, 2014

पद्मा सचदेवा एवं बतौर मुख्य वक्ता शम्भुनाथ शुक्ल जी, कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ विमिलेश कांत वर्मा जी, साहित्यकार मनोज भावुक, अलका सिंह एवं क्षमा सिंह विशिष्ट अतिथि के हाथों विष्णु प्रभाकर साहित्य सम्मान लेते हुए मैं ये मेरा सौभाग्य है l




Wednesday, August 13, 2014

ये जमी सूरज चाँद सितारे वही हैं,
यहाँ आदमी बदला और इमान बदलता है l 
इंसान वही रास्ते वही और शाम वही है, 
कोई धर्मं बदले और कोई भगवान् बदलता है l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

माँ के चार रूपों की आज स्थिति स्त्री, गौ, धरती और भाषा

माँ के हर रूप को देखो 
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में 
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ? 

कट रही गौ एक तरफ 
लुट रही लौ एक तरफ 
क्षीण हो रही दिव्या धरा की शाखाएँ 
मिट रही पल-पल अपनी ही भाषाएँ 
और हम मौन खड़े गूंगे बैठे हैं l 

माँ के हर रूप को देखो 
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में 
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ? रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 



Tuesday, August 12, 2014

भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l 
समेट रहे हैं पश्चिम को हर ओर 
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l 
लेटी हुई है शय्या पर भाषा और 
हम हिंदी के गुण गा रहे हैं l 
लेकर अग्नि हम हाथों में 
हिंदी को रोज जला रहे हैं l 
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l 
है नहीं कोई रक्षक दल अपना
जो गौरव से अपनी भाषा बोले 
देखो दाग रहे हैं सीमा से 
अपनी भाषा पर  ही वो गोले l 
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l 
समेत रहे हैं पश्चिम को हर ओर 
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी;' 

Saturday, July 26, 2014

कुछ लेखनियाँ घायल है कुछ खामोश हैं,  

बैठी सारकार जिनकी गोद में वो मदहोश हैं l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Thursday, July 24, 2014

उँगलियाँ

हर जगह हर मंच पर
मंडराती नजर आती हैं
ये तेरी उँगलियाँ l

किसी खोजी पत्रकार की तरह
हर बार बेद जाती हैं 
ये तेरी उँगलियाँ l

मिटटी पानी धरा मानव की क्या बात करूँ मैं
उस मनोहारी चाँद तक जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l

क्या छूटा इन से आजतक
पाक गीता कुरान तक भी जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l


कब कहाँ किसने की रोकने की
कोशिश और कौन रोक पाया
ये तेरी उँगलियाँ ! -रचना -सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Thursday, July 3, 2014

मेरे कदमो की आहाट से अब उनको डर लगने लगा,
जो कभी मेरे इन्तजार में आँखें बिछाए रहते थे l 
वही अब दिन-रात बेचैन रहते हैं अपने सपनों से ,
जो कभी छुपाये अपने ख्वाबों में हमें रहते थे l @ राजेंद्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Saturday, June 21, 2014

मैं तो घर ही ढूढने निकला था शहर में पर,

कई माकन मिले हैं मेरे साथियों के सफ़र में,

आँगन भी कुछ यूँ भरे थे गाड़ियों से,

और सिमटी हुई एक ओर मेरी खटिया पड़ी थी !! @ राजेंद्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Wednesday, May 28, 2014

बिसरी कबार छ यू मन्खी 
डांडी कांठी डाली बौटली 
सुख का खातिर गै छ आपणा 
सुख का खातिर औणु बौडी 
अजी क्या बोना छाँ होवैगी विकास 
बांजी पुन्गुडी बौंण उदास l - गीत सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Wednesday, May 7, 2014

यूँ डांडी कांठियों कु सुख ठुकरै तै,
पिली बणी छन मुखुडी हफार,
जुकुड़ीकु खोज्णा सुख निकल्यी छा  
आंखी बथौणी हौग्या बीमार l  गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  

   

Tuesday, May 6, 2014

चंपा के फूलों की भीनी भीनी महक,

आज भी फैलती है मेरे घर गाँव में, 

कुदरत ने दिया है हमें ये अनमोल तोफा,

हम भी खेले कूदें हैं चंपा की छाव में l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


 



हम परिंदे ही सही मगर समाज को नहीं बांटते,
खुद की उड़ान के लिए कभी रस्ते नहीं छांटते,
रखतें हैं हौसले खुद तिनके तिनके जोड़ने का,
किसी के चेहरे पर कभी अपनी ख़ुशी के लिए नहीं झांकते l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Saturday, May 3, 2014

संकोच तेरी आँखों में सब टकटकी लगाये पढ़ते हैं,

तूफ़ान ह्रदय का दीखता जिसे वो हम ही अकेले हैं @राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Thursday, May 1, 2014

वक्त को न छेड़ अपनी कुरेद कर जुवान से,

नजर वक्त की पहिचान ले भगवान भी वो शैतान भी है - गीत- कॉपी राईट  राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Wednesday, April 30, 2014

एक बार उठा के नजर देख लीजिये,

कल क्या जाने सामना ही न हो,

हम देखते है आपको जिन नजरों से,

कल हो या न हो वो नजरें ही न हो l कॉपी राईट - गीत -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, April 29, 2014

जिगर में बैठ कर ढून्ढते रहे आशियाना वर्षों तक, 

और एक लौं के बुझते ही न जाने क्यों बिखर गए,  

यूँ तो सपने हर कोई देखता है हर बार चाँद के, 

छत से भी देखने को मिल जाय तो नसीब समझिए l कॉपी राईटस @  राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  

ये ऊँगली कमाल की है

जिनको थामने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ा कभी, 

उन्ही की तलास में आजकल बहुत घूम रहे है l 

लेकर नोट कोई कोई मदिरा में झूम रहे हैं,

हाल ये है अब बस्तियों का हर कोई ऊँगली चूम रहे हैं l @राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Thursday, April 24, 2014

आगि डाल्यौं पर मौल्यार देख बसंतकु हुलार,


कन नाचणु च पात्ग्यौं मा, देख डाल्यौं कु मौल्यार l

 @ गीत राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Friday, April 18, 2014

आज नफरतों से ज्यादा दर्द मोहबतें देती है 

जुवाने लडखडाती हैं सदा आँखें कह देती है l  @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 










उडती आंधियां अब इंसानियत सिखा रही हैं ,

फैला के पंख खुद को आसमा बता रही हैं l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Wednesday, April 16, 2014

गीत

धुँआ जलते जिगर का देखते है कहाँ कब किसी ने,

अँगार सा जलता है ये और लोग देखते हैं पसीने,

जख्म इतने है बने विन खंजर के इस तन पे,

एक एक को कुरेदा है हर एक सदी ने ! गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  









लुटे हैं कई बार

डूब गया है मेरा भारत देखो चंद चेहरों में,

बिखर गया यहाँ का इंसान चुनावी घेरों में,

लुटे हैं कई बार बच बच के अपनों से, 

फंसे हैं  हर बार सागर सी लहरों में l  रचना @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Sunday, December 29, 2013

हाइकु

भारतवर्ष 

फिर जागा ये देखो  

नया तूफान ! 

रंग बदले  

सब चेहरे देखो

कुछ तो लुटा !! 

ठंडी हवा सा 

फैलता कोहराम 

आज सिमटा !!!

गरमाई है 

कुछ धूप में अब 

तूफान कहाँ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Thursday, December 19, 2013

खोपड़ी कु बथौंऊँ

गैणों पर तेरी नजर

चाँद पर तू उतरिगे

क्या बिगाड़ी ईं धर्तिन

मन मा जरा सोच लें 

गैणों पर तेरी नजर..........

क्या भाग्दी ईथ्यं  उथ्यं 

बैठिक तू सोच ली 

खोपड़ी मा उठियुं बथौंऊँ 

हे जुकुडी तू रोक ली - गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Thursday, October 24, 2013

पूछा रे पूछा पूछा (Puchha re Puchha Puchha)

दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
कख भीटि आई बथौं बणिक 
यू रीति रिवाज कैकू च 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा
नौउ विकाश कु ली तै चल्णु 
कैकी खूटियों न हिटणु च 
हरी भरीं कांठियों मा मेरी 
विष बनिक रिटणु च 
पूछा रे पूछा पूछा 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
भेल्य बिटौमा मोटर आगि 
मन्खी यख भीटी भाग्णु च 
गौ गुठ्यारू सब मुर्झागी शहर
हफार हैसणु च 
पूछा रे पूछा पूछा 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
आई कख भीटि बथौं बणिक 
यू रीति रिवाज कैकू च
गौं गैल्यी पुस्तैनी
मिटी गैनी आज  
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी  
पूछा रे पूछा पूछा 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
आई कख भीटि बथौं बणिक 
यू रीति रिवाज कैकू च
गैल्यी पुस्तैनी मिटी गैनी आज  
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी   – गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी'






Wednesday, September 25, 2013

मैं पत्थर हूँ (main patthar hun )


मंदिर में रख दो मुझको, 

या ठुकरा दो चौराहों पर l

मैं पत्थर हूँ पत्थर ही रहूँगा,

हे मानव मुझे गुमराह न कर ll

संवार कर यूँ न रख मुझे,

मैं सारे जहाँ का ठुकराया हूँ l

हंस कर रो न पाउँगा फिर,


मैं पल पल का सताया हूँ ll -  रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी’


मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।