Sunday, January 8, 2012

जलना हो तो सूरज सा जल के देखो


दूसरों की खुशियों पे
दुःख जताने वालों,
आसमां की तरह 
छत चाहाने वालों,
क्यों तिनके तिनके पे, 
इस कदर जलते हो,
जब जलना ही है तो 
सूरज सा जल के देखो l 
धरती की छाती को, 
फाड़ने वालों,
चाँद की सतह पर 
पताका गाड़ने वालों,
खुद के कदमो की 
जमीं को भी देखो,
इरादे हैं तुम्हारे नेक तो 
सूरज सा बन के देखो 
हर ले हर तम 
दूसरे के घर का 
चिराग ही है अगर बनना
तो ऐंसा बन के देखो 
जब जलना ही है तो 
सूरज सा जल के देखो !........रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 




15 comments:

Praveena joshi said...

इरादे हैं तुम्हारे नेक तो
सूरज सा बन के देखो
बहुत खूब फरियादी जी

shashi purwar said...

NAMASKAR FARIYADI JI .

BAHUT HI KHOOBSURAT RACHNA .........ATTI UTTAM .
इस कदर जलते हो.
जब जलना ही है तो
सूरज सा जल के देखो,........WAH HAR SHABD DIL ME UTAR GAYA .
BAHUT KHHOB ...SUNDER RACHNA KE LIYE ABHAR .

Sanju said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

रश्मि शर्मा said...

वाह...बहुत खूब....बड़ी अच्‍छी प्रेरणा दी है आपने ।

Vinod Singh Jethuri said...

SUNDAR RACHNA BHAI..

p said...

गजब ...की रचना है कुँवर भाई जी .......ग्रेट .

गुड्डोदादी said...

जब जलना ही है तो
सूरज सा जल के देखो,

अपनत्व बाँट के देखो

गुड्डोदादी said...

इरादे हैं तुम्हारे नेक तो
सूरज सा बन के देखो

बहुत ही सुंदर
बधाई स्वीकार करें

Jyoti khare said...

जीवन की सार्थक सोच को व्यक्त करती कविता
बधाई

sheodayal lekhan said...

आप अपनी ही शैली में मरती हुई संवेदना को जिलाने की कोशिश कर रहे हैं। यूं ही सृजनरत रहिये फरियादी जी !
शिवदयाल

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद ......ये मेरा सौभाग्य है कि आप सब मित्रो के स्नेह और आशीर्वाद से मेरी रचनाओं को मार्गदर्शन मिल रहा है ....आशा है आपका स्नेह यूँ ही बना रहेगा|

vijaya pant Mountainneer said...

दूसरों की खुशियों पे
दुःख जताने वालों,
आसमां की तरह
छत चाहाने वालों,
क्यों तिनके तिनके पे
इस कदर जलते हो.
जब जलना ही है तो
सूरज सा जल के देखो,
धरती की छाती को
फाड़ने वालों,
चाँद की सतह पर
पताका गाड़ने वालों,
खुद के कदमो की
जमीं को भी देखो,---बहुत उम्दा

vijaya pant Mountainneer said...

जरूर

Diwaker uniyal said...

बहुत ही सरल शब्दों में यथार्थ रचना।आपकी लेखन शैली बड़ी ही निराली है। अद्भुत।

देवेन्द्र पाण्डेय ‘जगन’ said...

दादा बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।